Monthly Archives: March 2013
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पन्द्रह जवानों का समूह अपने अधिकारी के नेतृत्व में हिमालय की और बढ रहा था।ठंड का मौसम था,रात हो चली थी और जवान भी थक गए थे।तभी उनकी नजर एक बंद पड़ी चाय की दुकान पर पड़ी उन्होंने अपने मेजर से पूछा क्या वे दुकान का ताला तोड़कर चाय बनाकर पी सकते है।मेजर ने वक्त की नजाकत को समझते हुए इजाजत दे दी।जवानो ने चाय पी और पूरे उत्साह से अपने मिशन की ओर चल दिए।
तीन महीने बाद जब वे लौटकर आये तो वह दुकान खुली देखकर वे उसमें गए चायवाला एक गरीब बूढ़ा आदमी था।इतने लोगों को एक साथ देखकर बहुत खुश हुआ कि आज तो अच्छी कमाई होगी। जवानों ने जमकर नाश्ता किया और उससे बाते करते हुए पूछा कि दूरदराज के इलाके में दुकान चलाने का क्या मकसद है।उस बूढ़े आदमी ने जो भी जवाब दिया सब में ईश्वर के प्रति अगाध भरोसा था कि उसने सब कुछ ईश्वर की इच्छा से किया है ,वरना उसकी हस्ती ही क्या है ?जवानो ने उसकी बात से असहमत होते हुए कहा कि यह सब तुम्हारी मेहनत और हिम्मत की वजह से है ,यदि भगवान कुछ करने वाला होता तो तुम इतने गरीब नहीं होते।
बूढ़े आदमी ने उन्हें बताया कि जब -जब मैंने ईश्वर से मदद मांगी है उसने मेरी मदद की है।उसने तीन महीने पहले का अनुभव बताते हुए कहा कि मेरे बेटे की बहुत तबियत ख़राब थी मै जल्दी दुकान बंद करके चला गया था।मेरे पास बच्चे की दवाई के भी पैसे नहीं थे ,मैंने ईश्वर से प्रार्थना की और सुबह जब दुकान पर पहुंचा तो दुकान का ताला टूटा हुआ था और चीनी के डिब्बे के पास एक हजार का नोट रखा था।मेरे ईश्वर ने मेरी मदद करने के लिए मेरी दुकान का ताला खोला और मुझे इतना धन दे गये कि मेरे बच्चे का इलाज आराम से हो गया।
बूढ़े की बात सुनकर जवान बताना चाहते थे कि यह नोट तो उनके मेजर ने वहाँ रखा था लेकिन मेजर ने इशारे से मना किया क्योकि वह नहीं चाहता था कि बूढ़े आदमी का ईश्वर से भरोसा उठ जाए।वैसे भी ईश्वर कभी भी खुद प्रकट होकर किसी की मदद नहीं करते वे किसी न किसी को अपने प्रतिनिधि के रूप में भेजते है।इसीलिए तो जब मुसीबत में कोई हमारे काम आता है तो हम उसे अनेको धन्यवाद के साथ यह कहना नहीं भूलते कि आप तो हमारे जीवन में भगवान बनकर आये है।
भरोसा हमारे जीने का आधार है बिना भरोसे के कोई रिश्ता नहीं बन सकता।बिना भरोसे के हम अपने जीवन में सफल नहीं हो सकते। इसीलिए हमें अपने जीवन से संदेह को निकालकर भरोसे को जगह देनी चाहिए ताकि हम एक सुखद व शांतिपूर्ण जीवन जी सके।
सहयोग
एक व्यक्ति अपनी पत्नी का बिल्कुल भी सहयोग नहीं करता था उसने यह मानसिकता बना रखी थी कि कुछ भी हो जाए घर के काम तो पत्नी ही करेगीं। उसकी आदतों से परेशान पत्नी को एक उपाय सूझा वह सिरदर्द का बहाना करके लेट गयी।पति को ऑफिस जाना था और खाना बनाना आता नहीं था ऊपर से भूख भी बहुत लगी थी सो पत्नी की खुशामद करने लगा कि किसी तरह उठकर कुछ बना दो ताकि मैं समय पर ऑफिस जा सकूँ।पत्नी जिसने अपने पति को सुधारने का दृढ निश्चय कर लिया था ,प्यार से बोली प्रिय आज तुम बाहर से लेकर कुछ खा लेना आज तो बिल्कुल नहीं उठ सकती।
अब तो यह लगभग रोज का सिलसिला हो गया कि पति से घर भूखा जाता और बाहर जाकर खाता।पीछे से पत्नी उठती अपने लायक खाना बनाती खाती और पति के आने से पहले ही लेट जाती।रोज -रोज बाहर का खाना खाकर पति की सेहत भी ख़राब होने लगी और वह परेशान होकर पत्नी को डॉक्टर के पास ले गया सारे परीक्षण सही होने पर डॉक्टर ने विटामिन की गोलियां देते हुए कहा कि कुछ कमजोरी हैं आप ये इन्हें खिलाएं जल्दी ही ठीक हो जाएगी।
धीरे -धीरे पति ने हालात से समझौता कर लिया।अब वह सुबह जल्दी उठकर अपने काम निबटा कर नाश्ता बनाता अपनी पत्नी के साथ बैठकर खाता और फिर खाना बनाकर अपना टिफिन तैयार करता और ऑफिस जाता। हर काम के लिए पत्नी पर निर्भर रहने वाला इन्सान अब अपने काम तो खुद करता ही था पत्नी का भी सहयोग करता था।पत्नी भी उसमें आये परिवर्तन को महसूस कर रही थी सो वह भी शाम उसके आने के पहले अच्छा सा खाना बनाकर रखती और दोनों साथ बैठकर खाते।अब उसकी पत्नी बिल्कुल स्वस्थ हो गई थी लेकिन उसके पति का सहयोग उसे मिलता रहा क्योकि दोनों को एक दूसरे के सहयोग का महत्व समझ आ गया अब वे दोनों पहले ज्यादा खुश रहने लगे थे।
आज के आधुनिक युग में जहाँ पति -पत्नी अकेले रहते है एक दूसरे के सहयोग के बिना खुश नहीं रह सकते।संयुक्त परिवारों की की तरह यहाँ पत्नी का हाथ बटाने के लिए सास ,देवरानी और जेठानी नहीं होती।कभी -कभी उसे भी इन रूटीन कामों से उब हो जाती है और यही हाल पति का भी होता है जब उसे बाहर के सारे काम अकेले ही करने होते है।ऐसे में यदि पति -पत्नी एक दूसरे का सहयोग करे तो उनकी आपसी समझ तो बढ़ेगी ही साथ ही प्यार भी दुगना हो जायेगा।
आइये हम आहवान करे अपने देश के उन नवविवाहितो का जिन्होंने अभी -अभी नई गृहस्थी में कदम रखा है।उनके सुखद दाम्पत्य की नींव आपसी सहयोग और समझ पर ही निर्भर हैं।इसलिए आज की नई पीढ़ी को अपने अहम को भुलाकर आपसी सहयोग के साथ अपने नये जीवन की शुरुवात करनी होगी तभी समाज में बढ़ते हुए तलाक के चलन को हम ख़त्म कर पायेंगे।